व्यापार

भारत ने नेपाल की चिंताओं को अस्वीकार किया, कहा- लिपुलेख दर्रा से सालों से हो रहा है व्यापार।

भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख दर्रे का विवाद

लिपुलेख दर्रा, जो हिमालय में स्थित है, भारत और नेपाल के बीच एक से अधिक दशकों से चल रहा विवाद का केंद्र बिंदु बना हुआ है। नेपाल का इस दर्रे पर दावा है, जबकि भारत इसे अपनी भूमि का हिस्सा मानता है। यह विवाद केवल भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं है, वरन यह राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक मायनों में भी गहरा है।

इतिहास और विवाद का प्रारंभ

लिपुलेख दर्रा का ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि यह एक पारंपरिक व्यापार मार्ग है जो भारत को तिब्बत से जोड़ता है। यह मार्ग न केवल आर्थिक लेन-देन का साधन है, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी एक महत्वपूर्ण जरिया रहा है।

1927 में, ब्रिटिश भारत द्वारा किए गए एक सरकारी सर्वेक्षण ने इस क्षेत्र की सीमाओं के बारे में अस्पष्टता पैदा की। 1950 में, भारत और नेपाल के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें इस दर्रे के संदर्भ में कुछ मुद्दे उठाए गए थे, किंतु उसके बाद भी स्पष्टता नहीं आ पाई।

भारत का दृष्टिकोण

भारत का मानना है कि लिपुलेख दर्रा उसका हिस्सा है, और दशकों से वह इस क्षेत्र का उपयोग कर रहा है। भारत ने इसे अपने क्षेत्र की संप्रुभता के तहत मान्यता दी है। इस संदर्भ में, भारत ने हाल ही में अपने सड़क बुनियादी ढांचे को इस क्षेत्र में विकसित किया है ताकि व्यापार को सुगम बनाया जा सके, जो नेपाल के लिए भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

नेपाल की प्रतिक्रिया

नेपाल ने भारत की सड़कों के निर्माण और लिपुलेख पर उसके दावों को लेकर लगातार विरोध किया है। नेपाल सरकार का कहना है कि यह बुनियादी ढांचा उनके क्षेत्र में किए गए विस्तार के रूप में देखा गया है। इसके आलोक में, नेपाल ने अपनी संसद में एक नया मानचित्र मंजूर किया, जिसमें लिपुलेख दर्रे सहित सभी विवादित क्षेत्रों को शामिल किया गया है।

चीन का प्रभाव

नेपाल और चीन के बीच हाल के समझौतों ने इस विवाद को और भी जटिल बना दिया है। नेपाल का चीन के साथ सामरिक और आर्थिक सहयोग बढ़ रहा है, जिससे भारत को चिंता हो रही है। नेपाल सरकार ने चाइनीज़ राज्य से विशेष सौदों पर हस्ताक्षर किए, जिससे भारत के लिए यह स्थिति और भी चिंताजनक हो गई है।

सामरिक दृष्टिकोण

भौगोलिक स्थिति के कारण, लिपुलेख दर्रा सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र भारत और चीन की सीमाओं के निकट है, जिससे यह दोनों देशों के लिए सामरिक महत्व रखता है। भारत का यह स्थान अपनी सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग के रूप में कार्य करता है।

नेपाल की नई रणनीति

नेपाल ने इस मुद्दे पर भारत को डिप्लोमैटिक नोट भेजने की योजना बनाई है। इसका उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि नेपाली सरकार अपनी संप्रभुता को लेकर गंभीर है। नेपाल में कई राजनैतिक दल सरकार के इस कदम का समर्थन कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि नेपाल की संप्रभुता को मजबूती से खड़ा किया जाए।

निष्कर्ष

लिपुलेख दर्रे का विवाद केवल भूमि के दावों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दो देशों के बीच राजनीतिक संबंधों और रणनीतिक संतुलन का भी संकेत देता है। जब तक इस मुद्दे को द्विपक्षीय संवाद और समझौतों के माध्यम से हल नहीं किया जाता, तब तक यह विवाद जारी रहेगा।

क्षेत्रीय स्थिरता के लिए, भारत और नेपाल के संबंधों को सुधारने की आवश्यकता है। पारस्परिक संवाद और सहयोग से ही दोनों देशों के बीच इस विवाद का समाधान निकाला जा सकता है। यह न केवल इन दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक बड़ी सकारात्मक पहल होगी।

भारत और नेपाल को एक दूसरे की चिंताओं और आवश्यकताओं को समझते हुए एक साझा हल की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है। सही संवाद और सहयोग के माध्यम से ही, लिपुलेख दर्रे का विवाद हल किया जा सकेगा, और दोनों देश फिर से एक सहयोगी और मित्रवत संबंध की ओर लौट सकते हैं।

admin

Related Articles

Back to top button