“व्यापार अब एक हथियार है…” पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने अमेरिकी टैरिफ को भारत के लिए चेतावनी बताया।

‘व्यापार अब हथियार बन गया है…’, पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन बोले- अमेरिकी टैरिफ भारत के लिए चेतावनी
पूर्व भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में अमेरिकी टैरिफ को लेकर अपनी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक व्यापारिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसके साथ एक बड़ी भू-राजनीतिक तस्वीर भी जुड़ी हुई है। राजन के अनुसार, अमेरिका का यह कदम एक चेतावनी है, जिससे भारत को सावधान रहना चाहिए।
राजन का मानना है कि विश्व आर्थिक प्रणाली में तालमेल बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर देश अपने हितों को प्राथमिकता देने के बजाय एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं, तो व्यापार में निरंतरता और विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।
‘आख़िरकार हमें साथ आना ही है’, क्या अमेरिकी मंत्री का ये बयान है टैरिफ़ पर नरमी का संकेत?
अमेरिकी वित्त मंत्री का हालिया बयान भी इस दिशा में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि सभी देशों को मिलकर काम करना होगा ताकि वैश्विक व्यापार को प्रवाहित रखा जा सके। उनके इस बयान को एक संकेत माना जा रहा है कि अमेरिका टैरिफ़ में नरमी लाने के इच्छुक हो सकता है।
इस प्रकार के बयानों के बीच, यह देखना होगा कि क्या वास्तव में अमेरिका ने अपने व्यापारिक दृष्टिकोण में कोई बदलाव किया है या नहीं।
टैरिफ वॉर के बीच सामने आई अमेरिका की खीझ, जानें अब व्हाइट हाउस के एडवाइजर्स ने क्या कहा?
टैरिफ वॉर के बीच, व्हाइट हाउस के सलाहकारों ने चिंता जताई है कि अमेरिकी उद्योग पर इन टैरिफ़ का नकारात्मक असर हो रहा है। उनका कहना है कि यह स्थिति उद्योगों के लिए मुश्किलें उत्पन्न कर सकती है।
बहरहाल, सलाहकारों ने यह भी कहा है कि अमेरिका को अंततः सहयोग और संवाद के माध्यम से इस मुद्दे का समाधान निकालना चाहिए। अद्यतन स्थितियों में, यह संभव है कि अमेरिका अपने टैरिफ़ को पुनः परिभाषित करे।
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अमेरिकन मीडिया ने हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध का टैरिफ वॉर से सीधा संबंध है। इस संदर्भ में, उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण को भी महत्वपूर्ण बताया है।
कहा जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियों का भारत पर गहरा असर पड़ रहा है। विशेष रूप से, अगर भारत अपनी रणनीति को सही दिशा में नहीं ले जाता, तो उसे गंभीर आर्थिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
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अमेरिकी अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि यदि भारत ने अपने व्यापारिक ढांचे में बदलाव नहीं किया, तो अंतराष्ट्रीय स्तर पर उसके लिए समस्याएँ बढ़ सकती हैं। अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि ट्रंप प्रशासन के दौरान जो भी आर्थिक नीतियाँ लागू की गई थीं, वे फिर से लागू हो सकती हैं।
उनका कहना है कि भारत को अपने व्यापार में लचीलापन लाना पड़ेगा, और यदि ऐसा नहीं हुआ, तो परिणाम चिंताजनक हो सकते हैं।
निष्कर्ष
इस प्रकार, हम देख सकते हैं कि अमेरिकी टैरिफ का मुद्दा केवल एक व्यापारिक समस्या नहीं है, बल्कि यह एक गहरी भू-राजनीतिक चुनौती भी है। इसमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग और संवाद की आवश्यकता है। इस संदर्भ में रघुराम राजन के विचार महत्वपूर्ण हैं, और ये हमें यह याद दिलाते हैं कि व्यापार में सहयोग ही सबसे महत्वपूर्ण है।
अर्थव्यवस्था के इस तेजी से बदलते परिदृश्य में, सभी देशों को वैश्विक व्यापार के विकास के लिए एकजुट होकर काम करना होगा। यदि हम आतंकवाद, आर्थिक संकट, और भू-राजनीतिक चुनौतियों को सही तरीके से समझते हैं, तो हम एक मजबूत वैश्विक आर्थिक प्रणाली बना सकते हैं।
व्यापार के इस संक्रामक माहौल में भारतीय और अमेरिकी दोनों को अपने दृष्टिकोण में बदलाव करने की जरूरत है। भविष्य में यदि ऐसे टैरिफ़ को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो यह न केवल देशों के व्यापार को प्रभावित करेगा बल्कि इसके दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं।
यह समय है कि सभी देशों को एकजुट होकर व्यापार, अर्थव्यवस्था, और भू-राजनीति के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रयासरत रहना होगा। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।