अमेरिकी टैरिफ पर भारत की प्रतिक्रिया: जयशंकर ने स्पष्ट किया रूस से तेल खरीद पर भारत की स्थिति

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में भूचाल आ गया है। पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए, लेकिन इसके बावजूद रूसी तेल और गैस का व्यापार विभिन्न देशों के साथ जारी रहा। इस बीच, अमेरिका ने भारत पर विशेष ध्यान देते हुए टैरिफ का हवाला देकर सवाल उठाए। लेकिन भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत रूस से तेल का सबसे बड़ा खरीदार नहीं है—बल्कि चीन और यूरोपीय संघ इस सूची में कहीं आगे हैं।
जयशंकर का बयान न केवल भारत की ऊर्जा नीति को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत वैश्विक दबावों के बावजूद अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध और ऊर्जा संकट
फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूरोप और अमेरिका ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इसका सबसे बड़ा असर ऊर्जा क्षेत्र पर पड़ा, क्योंकि यूरोप लंबे समय से रूस से प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक रहा है।
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यूरोप को ऊर्जा आपूर्ति रोकने से रूस की अर्थव्यवस्था पर चोट पहुँचाने की कोशिश हुई।
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लेकिन रूस ने तुरंत एशियाई देशों की ओर रुख किया।
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चीन और भारत जैसे बड़े उपभोक्ता देश रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदने लगे।
यही वजह रही कि भारत की तेल खरीदारी को लेकर पश्चिमी देशों में आलोचना हुई।
अमेरिका का टैरिफ और भारत पर निशाना
हाल ही में अमेरिका ने टैरिफ का हवाला देकर रूस से भारत की तेल खरीद पर अप्रत्यक्ष रूप से सवाल खड़े किए। अमेरिका का तर्क था कि भारत अगर रूस से लगातार तेल खरीदेगा, तो यह वैश्विक प्रतिबंधों की भावना के खिलाफ है।
लेकिन यह तर्क पूरी तरह संतुलित नहीं दिखा, क्योंकि—
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चीन रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है।
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यूरोप भी रूसी गैस का बड़ा उपभोक्ता रहा है।
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भारत की तुलना में उनका आयात कहीं ज़्यादा है।
इसी असमानता पर भारत के विदेश मंत्री ने सीधा जवाब दिया।
जयशंकर का बयान: “भारत नहीं, चीन है सबसे बड़ा खरीदार”
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कहा कि भारत को रूस से तेल खरीदने पर निशाना बनाना अनुचित है।
उनके मुख्य बिंदु इस प्रकार रहे:
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भारत सबसे बड़ा खरीदार नहीं – रूस से तेल का सबसे बड़ा आयातक चीन है, न कि भारत।
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यूरोप भी बड़ा उपभोक्ता – प्राकृतिक गैस (LNG) के मामले में यूरोप सबसे आगे है।
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भारत अमेरिका से भी खरीदता है – भारत केवल रूस से ही नहीं, बल्कि अमेरिका से भी बड़ी मात्रा में तेल और गैस खरीदता है।
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टैरिफ का तर्क विचलित करने वाला – अमेरिका द्वारा लगाया गया यह तर्क “perplexing” (भ्रमित करने वाला) है।
जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत की ऊर्जा जरूरतें बहुत विशाल हैं और किसी भी सस्ती सप्लाई को नज़रअंदाज़ करना उसके लिए संभव नहीं।
भारत की ऊर्जा नीति: राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। उसकी ऊर्जा ज़रूरतें इतनी अधिक हैं कि वह किसी एक देश पर निर्भर नहीं रह सकता।
भारत की नीति के कुछ प्रमुख पहलू:
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विविधीकरण (Diversification) – भारत अलग-अलग देशों से तेल और गैस खरीदता है।
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सस्ती आपूर्ति (Affordable Energy) – वैश्विक बाज़ार में जो भी सबसे सस्ता होगा, भारत उसी का विकल्प चुनेगा।
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रणनीतिक स्वतंत्रता (Strategic Autonomy) – भारत किसी दबाव में आकर अपने निर्णय नहीं लेता।
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दीर्घकालीन सुरक्षा (Energy Security) – भारत यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य में भी ऊर्जा आपूर्ति बनी रहे।
इस नीति का नतीजा है कि भारत ने रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदकर अपने उपभोक्ताओं को महंगाई से बचाया।
चीन और यूरोप की तुलना में भारत की स्थिति
अमेरिका और पश्चिमी देशों की आलोचना के बावजूद तथ्य बिल्कुल अलग हैं:
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चीन – रूस से सबसे ज़्यादा तेल और गैस खरीदता है।
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यूरोपीय संघ – रूसी गैस का सबसे बड़ा ग्राहक रहा है।
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भारत – रूस से तेल खरीदता है, लेकिन उसकी मात्रा चीन और यूरोप से कहीं कम है।
इसलिए केवल भारत को निशाना बनाना संतुलित दृष्टिकोण नहीं कहा जा सकता।
अमेरिका-भारत संबंधों पर असर
भारत और अमेरिका के बीच संबंध मजबूत हैं।
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दोनों देशों के बीच रक्षा, तकनीक और व्यापार के गहरे रिश्ते हैं।
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लेकिन ऊर्जा नीति पर दोनों की प्राथमिकताएँ अलग हैं।
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अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए, लेकिन भारत अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं कर सकता।
जयशंकर के बयान से यह साफ हो गया कि भारत अमेरिका के साथ रिश्ते बनाए रखते हुए भी स्वतंत्र नीति अपनाएगा।
आगे की संभावनाएँ
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भारत का संतुलन – भारत रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखेगा, लेकिन अमेरिका और खाड़ी देशों से भी आयात बनाए रखेगा।
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नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर – भारत दीर्घकाल में सौर और पवन ऊर्जा पर अधिक निवेश करेगा।
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भू-राजनीतिक दबाव – अमेरिका और यूरोप का दबाव आगे भी जारी रहेगा, लेकिन भारत की स्थिति साफ है कि वह केवल अपने नागरिकों के हित में निर्णय लेगा।
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वैश्विक ऊर्जा समीकरण – रूस, चीन, भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा व्यापार आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अहम मुद्दा बनेगा।
निष्कर्ष
विदेश मंत्री एस. जयशंकर का यह बयान भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता और व्यावहारिक कूटनीति का उदाहरण है। उन्होंने स्पष्ट किया कि रूस से तेल खरीदने में भारत सबसे आगे नहीं है, बल्कि चीन और यूरोप की भूमिका कहीं बड़ी है।
भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को देखते हुए हर विकल्प अपनाएगा, और किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में आने के बजाय “भारत पहले” की नीति पर कायम रहेगा।