स्वास्थ्य

प्रेमानंद महाराज ने बताया कि केवल 5 रुपये में घर पर ही कोलन की सफाई (आंत्र शुद्धि) कैसे की जा सकती है।

निरोगी शरीर बनाए रखने के लिए पेट को स्वच्छ रखना और शरीर को हल्का बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। कब्ज या पेटदर्द व्यक्ति के मन को चिड़चिड़ा बना सकता है और किसी भी कार्य में मन नहीं लगता। किसी भी प्रकार के पेटदर्द को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि अधिकांश रोग यहीं से उत्पन्न होते हैं। यदि आप भारी भोजन करते हैं, तो यह आदत तुरंत छोड़ देनी चाहिए।

आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि भारी भोजन पचाना कठिन होता है, जिससे कब्ज, गैस और अम्लता जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। पेट की गड़बड़ी शरीर और मन दोनों को दुर्बल बना देती है।

पेट स्वच्छ रखने के उपाय

पेट में जमी हुई गंदगी सैकड़ों रोगों को जन्म देती है। महाराज जी ने गैस, अम्लता, आँतों की गंदगी और कब्ज जैसे पेट के विकारों के निवारण हेतु कुछ उपाय बताए हैं, जिन्हें जीवन में अपनाना लाभकारी होगा।

प्रातः उठने पर क्या करें

महाराज जी ने बताया कि आपका प्रातःकालीन दिनचर्या ही आपके स्वास्थ्य को निर्धारित करती है। कब्ज से बचने के लिए, उठते ही सबसे पहले भगवान का स्मरण करें और उसके बाद गुनगुना पानी पिएँ। अपनी क्षमता के अनुसार वज्रासन में बैठकर आधा लीटर, एक लीटर या जितना संभव हो उतना पानी धीरे-धीरे ग्रहण करें।

गुनगुना पानी पीने के लाभ

महाराज जी ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार पानी पीने से आँतों में जमी हुई गंदगी नरम हो जाती है और उसे बाहर निकालना आसान हो जाता है। इससे पाचन क्रिया सुधरती है। पानी पीने के बाद थोड़ा चलने से शरीर में ऊर्जा आती है और आवश्यकता होने पर थोड़ा विश्राम भी किया जा सकता है।
प्रतिदिन इस सरल नियम का पालन करने से कब्ज, गैस और भारीपन जैसी समस्याएँ दूर होती हैं तथा साधक का मन भक्ति और साधना में एकाग्र होता है।

हल्का और सात्त्विक भोजन करें

महाराज जी ने बताया कि भोजन का उद्देश्य केवल पेट भरना नहीं, बल्कि शरीर को ऊर्जा और चैतन्य प्रदान करना है। इसलिए कम, हल्का और सात्त्विक भोजन करना सर्वोत्तम माना गया है। भारी तथा तामसिक भोजन पाचन तंत्र पर बोझ डालता है, कब्ज उत्पन्न करता है और मन को आलस्य तथा तमस की ओर ले जाता है।

उपवास और मूँग की दाल का सेवन

महाराज जी ने कहा कि यदि लगातार कब्ज की समस्या बनी रहती है, तो दो या तीन दिन हल्का उपवास किया जा सकता है। इस अवधि में फल या केवल पतली मूँग की दाल का सेवन करें। इससे पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है और शरीर में आंतरिक संतुलन बना रहता है। साथ ही तले-भुने एवं अत्यधिक मसालेदार पदार्थों से परहेज़ करें।

रात्रि में लाभकारी पेय

गुनगुने दूध में एक चम्मच इसबगोल (सायलियम हस्क) तथा त्रिफला चूर्ण मिलाकर रात्रि में सोने से पहले लेना अत्यंत लाभकारी माना गया है। इसबगोल में विद्यमान घुलनशील रेशे आँतों में जल को अवशोषित कर मल को मुलायम बनाते हैं, जिससे वह सहजता से बाहर निकलता है। त्रिफला चूर्ण पाचन शक्ति को प्रबल करता है, आँतों को स्वच्छ रखता है और नियमित मलत्याग में सहायक होता है।

नियम का पालन करें

महाराज जी ने कहा कि एक नियम सदैव स्मरण रखना चाहिए—साधक को अपना आधा पेट भोजन से, एक चतुर्थांश जल से और शेष चतुर्थांश वायु के लिए रिक्त रखना चाहिए। यही संतुलन शरीर में ऊर्जा बनाए रखता है और भक्ति की शक्ति को बढ़ाता है।

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